
वाराणसी में आयोजित एक कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का बयान सुनते ही बिजली गुल नहीं हुई, मगर बहस ज़रूर शुरू हो गई। योगी बोले- “ताजिया इतना ऊँचा मत बनाओ कि हाईटेंशन तार की भी सांस फूल जाए।”
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ताजिया में करंट और बयान में लहज़ा हाई वोल्टेज
मुख्यमंत्री ने साफ कहा कि “बिजली बिल ना भरने वालों की वजह से, बिजली बिल भरने वालों को अंधेरे में नहीं छोड़ा जा सकता।”
और जब जौनपुर में ताजिया करंट की चपेट में आया और मौतें हुईं, तब योगी बोले- “लाठी मार के बाहर करो। लातों के भूत, बातों से नहीं मानते।”
अब इससे कौन झुलसा ज़्यादा — तार या तर्क — ये चुनावी गर्मी तय करेगी।
कांवड़ यात्रा: भक्तिभाव या मीडिया बहस?
योगी ने कहा- “हर वर्ग का व्यक्ति बम-बम बोलते हुए सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलता है। लेकिन मीडिया ट्रायल उसी का होता है।”
मतलब भक्त भले झूमते चलें, मीडिया को सिर्फ ध्वनि प्रदूषण सुनाई देता है।
भारत की विरासत बनाम मानसिकता की बहस
सीएम योगी का इशारा था कि कुछ लोग केवल “भारत की आस्था और विरासत” पर निशाना साधते हैं।
उन्होंने कहा- “कांवड़ यात्रा को बदनाम करना उस मानसिकता का हिस्सा है जो भारत की परंपरा को चोट पहुंचाना चाहती है।”
अब इसमें ट्रैफिक बाधा पर चिंता थी या “आस्था-विराम” — ये तो संपादकीय कॉल बन गया।
एक आयोजन, दो दृष्टिकोण — बिजली वहीं, बयान अलग-अलग
इस पूरे बयान से साफ है कि उत्तर प्रदेश की राजनीति अब हाईटेंशन जोन में प्रवेश कर चुकी है।
जहां एक ओर कांवड़ को सांस्कृतिक अभियान कहा गया, वहीं मुहर्रम के जुलूस को तकनीकी अड़चन मान लिया गया।
सवाल उठते हैं, जवाब लाठी वाले आते हैं।
और जनता सोचती है — “इस साल कांवड़ भारी पड़ेगा या बयानबाज़ी?”